बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 38)

जल्दी-जल्दी सत्तू खाकर बिल्लेसुर उठे।


 पनाले के पास बैठकर हाथ धोये, कुल्ले किये, अभ्यास के अनुसार जनेऊ में बँधी ताँबे की दंतखोदनी उठाकर दाँत खरिका किये


, फिर कुल्ले किये, और एक डकार छोड़कर सर झुकाये हुए कोठरी के भीतर गये। त्रिलोचन देखते रहे। बिल्लेसुर एक खटोला निकालकर बाहर ले आये।

डालकर कहा,––"आओ, ज़रा सँभलकर बैठना, हचकना नहीं।" त्रिलोचन उठकर खटोले पर बैठे। एक तरफ़ बिल्लेसुर बैठे।

त्रिलोचन ने बिल्लेसुर को देखा, फिर आश्चर्य से आँखें निकालकर कहा, "करना चाहो तो एक बड़ा अच्छा ब्याह है।"

विवाह के नाममात्र से बिल्लेसुर की नसों में बिजली दौड़ गई; लेकिन हिन्दुधर्म के अनुसार उसे उपयोगितावाद में लाते हुए कहा, "अब देखते ही हो सत्तू खाना पड़ा है। 

औरत कोई होती तो मरती हुई भी रोटी सेंककर रखती।"

"यथार्थ है," त्रिलोचन गम्भीर होकर बोले।

बिल्लसुर को बढ़ावा मिला, कहा, "गाँव के चार भाइयों का मोह है, पड़ा हूँ, नहीं तो मरने के लिये दुनिया भर में मुझे ठौर है।"

"अब यह भी तुम समझाओगे तब समझेंगे?"

बिल्लेसुर का पौरुष जग गया।

 उन्होंने कहा, "बंगाल गया था, चाहता तो एक बैठा लेता; लेकिन बापदादे का नाम भी तो है? सोचा, कौन नाक कटाये?

 तुम्हीं लोग कहते, बिल्लेसुर ने बाप के नाम की लुटिया डुबो दी।" बिल्लेसुर अपनी भूमिका से एकाएक विषय पर नहीं आ सकते थे।

 आने के लिये बढ़कर फिर हट जाते थे। 

त्रिलोचन ने कहा, "सारा गाँव तुम्हारी तारीफ़ करता है; गाँव ही नहीं, ग्वेंड़ भी कि बिल्लेसुर मर्द आदमी है।"

   0
0 Comments